Menu
blogid : 15807 postid : 601978

इक खय़ाल हिन्दी पर……

खयाल कभी कभी
खयाल कभी कभी
  • 5 Posts
  • 1 Comment

कल हिन्दी दिवस होते हुए काफी व्यस्त था। बहुत ही व्यस्त। दिन भर की व्यस्तता के कारण इस महान दिवस पर चाहते हुए भी कुछ लिख न पाया। अब आप तो जानते ही हैं व्यस्त दिनचर्या मे एक समय पर एक ही कार्य किया जाए तो ही ठीक। अन्यथा “झोल” बनने कि स्थिती बनी रहती है। व्यस्तता की सारी हदे कल ही पार होनी थी। जरा ठहरीये अपने को थोडा सुधार लूँ, और आपको गलतफहमी मे न रखूँ। कल किसी “हिन्दी दिवस” समारोह मे मै आमंत्रित नही था और न ही किसी समारोह मे दर्शक के रूप मे शामिल था। सच कहूँ तो कल अखबार उठाते ही “14 सितम्बर” की विशेषता मालूम हुई “हिन्दी दिवस”। पूरा अखबार बहुत ही उमदा तरीके से सजाया गया था, लग रहा था कि मानो आज कोई तीज-त्योहार हो। “भाषा वैज्ञानिको” के विभिन्न लेखों को एका-एक पढने लगा तो थोडी दिलचस्पी आने लगी। और फिर मैने थोडे और लेख पढे तो पढता ही चला गया और इसी तरह पुरा दिन “भाषा विज्ञानिको” के विभिन्न लेखों को पढ कर ही व्यस्त रहा। इस बाबत मै “गूगल बाबा” की शरण मे भी गया जो कि लाज़मी भी था।कई आर्टिकल्स और ब्लोग्स पढे। किसी ने “हिन्दी” के जन्म से लेकर अब तक की गौरव गाथा सुनाई। तो किसी ने इसे बुढा और लचार बताते हुए इसके ईलाज के लिए जल्द से जल्द डाँक्टर नियुक्त करने की पैरवी की।किसी ने इस भाषा को “पोलियो” से ग्रस्त बता इसे “दो बूँद जिन्दगी” की पिलाने कि बात की ।बहुत सी जगह इस भाषा को राष्ट्रा भाषा बनाने पर खूब “बरतन फोडे गए” । किसी ने हिन्दी की दुर्दशा पर ठीक उसी तरह गहरी चिंता जताई जिस तरह कक्षा 7-8 मे हिन्दी की अध्यापिका हमारी हिन्दी मे जताया करती थी। तो किसी ने हमारे जीवन मे हिन्दी का कितना और किस तरह का महत्व है ये समझाया। किसी ने इस भाषा के ऊपर मंडराते हुए खतरे पर दूसरी भाषाओं को जमकर कोसा और इसमे सबसे अव्वल रही “अंग्रेजी” भाषा। ज्यों ही “अंग्रेजी” पर उँगली उठी त्यों ही मेरी भौएँ उपर चढ गई। वो तो टी-शर्ट पहनी थी वरना बाजू गुलट मै भी कमेंट बाजी करने लगता उन लेखो पर। और कमेंट बाजी की उस लडाई का योद्धा बन जाता जो कि एक दूसरे की भाषा को “गाली-गलौज” देके लडी जा रही थी। इस दौरान अचानक “खय़ालों की खदान” से एक ख्य़ाल आया जो कि कभी-कभी ही आया करता है। ख्य़ाल आया उस छोटे से बच्चे का जो घर पर आए मेहमान द्वारा कोई कविता पूछे जाने पर झट से अंग्रेजी की दो बहुचर्चित कविता “जौनी-जौनी” और “टिव्ंकल-टिव्ंकल” आपके सामने पेश करता है। और आपकी तरफ टक-टकि लगाए आपके मुख से दो बडे ही अनमोल शब्द “वैरी गुड” सुनने को ललायित रहता। जैसे ही आपने उसके बिना कुछ कहे उसकी ये इच्छा पूरी की जाती है, वैसे ही “थैंक्यु अंकल” बच्चे की तरफ से आपके “वैरी गुड” का आपको “स्माईल” के साथ “काउन्टर अटैक”। अभी आपने हार नही मानी और उसकी मासूम सी “स्माईल” को देखकर आप भी “स्माईल” कर रहे होगें। आप को अब थोडा अटपटा लगता है, और आप अब भी “स्माईल” को अपने डिफेंस मे रखते हुए बच्चे से ईशारो मे पुछते है “अब क्या”? तभी बच्चे की वह मासूम सी दिखने वाली “स्माईल” आपका मजाक उडाते हुए आपको ” क्या अंकल थैंक्यु के बाद वैलकम कहते है , आपको इतना नी मालूम” कहते ही धाराशाही कर देता है। और आप बाद मे सारी औपचारिकताएँ पुरी करते है। अब “खय़ालो की खदान” से थोडा बाहर आते है। और इसे कुछ इस तरह देखते है, आप इसे औपचारिकताएँ कहें, शर्म कहें, डर कहें, य फिर समय की माँग का बहाना करें। ये बात तो सोचनी पडेगी की हम कदम हर बार क्यो खींच लिया करते हैं, भूत की “बोरीयत” ,भविष्य का “अधूरा सपना” य वर्तमान की “चकाचौंध” देखकर य फिर किसी और कारणवश। आपमे से कुछ लोग कह रहे होगें कि इतना लंबा लेख तो लिख दिया लेकिन देर-सवेर ही सही इसने इस दिवस की बधाई नही दी। तो इसके पीछे कहीं न कहीं मेरा वह डर छिपा है कि कहीं जवाब में “सेम टू यु ” जैसे शब्द सुनने को मिले।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh