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“गरीब की गरीबी”

खयाल कभी कभी
खयाल कभी कभी
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ग़रीब और उसकी गरीबी दोनों ही बड़े सामंजस बिठा के एक दूसरें के साथ “हँसते- खेलते” चलती रहती है । ग़रीब अपनी गरीबी से छुटकारा पाने की बहुत जदोजहद करता फिरता है, पर ये कम्भखत गरीबी उसका बिछडन बरदास्त करने योग्य नही होती ।और दोनों का रिश्ता यूँ ही ताउम्र सामंजस्य बिठाकर हँसते -हँसते कट जाया करता है और किसी को कानों कान खबर भी नही लगती । कुछ एक परिस्तिथियों में यह उलट ज़रूर जाता है । लेकिन जिनमे यह नही उलटता उस तरफ “करुणा भी अपना मुख छुपाने को कोना ढूँढती है” । भारत जैसे देश में आपको गरीब और उसकी गरीबी को देखने के लिए ज्यादा कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा । यह इस देश में अधिकाँशता अपनी ही जगह पर खड़े होकर अपनी गर्दन के प्रत्येक डिग्री की घूम पर आपके सामने होगी । और बद्द से बद्द्तर परिस्तिथिति में होगी । गरीब और उसकी गरीबी का यह अटूट रिश्ता इस देश में टूटे नहीं टूटता ।इसके भी कई कारण है। मूलतः कारण यह है की हम गरीब और उसकी गरीबी को “हाथों में ग्लव्स” पहन “थोड़ी दूरी बनाये” हुए मन और मस्तिष्क में बड़ी ही रम्यता से रटाये हुए सिधांतो से इसे टटोलते है और इसका आकलन भी कर बैठते हैं । हाथों में ग्लव्स और यह दूरी इतना तो अंतर पैदा कर ही देती है की उस की हकीकत तक हम पूरी तरह से पहुँच नही पाते । और रही सही कसर वे सिधांत पूरी कर देते है जिन्हें हमे रटाया गया है और उनको हम ही ने बड़े आदर्श पूर्वक मन और मस्तिष्क में संजो के रखा हुआ है । यह वे सिद्धांत है जिनमे गरीब और उसकी गरीबी को जाती और धर्म विशेष की तख्ती पर रख उसे मापने का पैमाना बना दिया गया है , और सभी जगह यही पैमाना इस्तेमाल भी किया जा रहा है । सोचने और समझने वाली बात है जब किसी भी विषय-वस्तु को मापने का पैमाना गलत हो तोह स्वभाविक है की उसका आंकलन भी गलत ही होगा, और अगर आंकलन गलत हुआ है तोह उस पर किया हुआ कोई भी रचनात्मक कार्य का विफल होना लाज़िमी है । यही हमारे इस भारत महान में भी हो रहा है । फिलहाल इसका सही- सही कोई भी डाटा हमारे पास नहीं , की यह पैमाना कब और कैसे बड़ी कुशलता से रटाया गया । हाँ पर इतना डाटा तोह आपको मिल ही जाएगा की इस से देश को कितना नफा और नुक्सान हुआ है ।
नेता और राजनेताओं की बात ही मत कीजिए क्योंकि इनके ऐसे कई वक्तव्य आपको मिल जायेंगे जिसमे की गरीब और उसकी गरीबी के “हँसते- खेलते” रिश्ते का उल्हास कर्तव्यपरायणता से उड़ाया गया है । इसलिए नेता जी को रहने ही दिया जाए , हालांकि भारत जैसे देश में किसी भी छोटे बड़े रीति- कुरीति के लिए इन्हें ही अकेले सबसे ज्यादा दोषी पाया जाता है, क्यूंकि नेताजी ही उसी बिरादरी से है जो ऐसे “मसलों का चुनावी मसाला” बनाने में निपुंड है और अपनी इसी निपुंडता की वजह से ही वे इस विषय में हमेशा अव्वल नजर आतें है । इन्ही नेता जी की देन है की अक्सर लोग-बाग़ गरीबी को धर्म -जाती -छेत्र में विभाजित करके देखने लगे हैं । विभिन्न माध्यमों से लोग -बाग़ के दिलों-दिमाग पर चाहते न चाहते हुए भी ये छाप छोड़ दी जाती है। इस देश की विडंबना देखिये कि इस देश में जितने गरीब हैं ,उस से कहीं अधिक उनके हितेषी मिल जायेंगे जो की देश विदेश से उनके इस समस्या का समाधान कम और बखान ज्यादा करते हैं (आप मुझे भी उनमे गिन सकते है )। हाँ कुछ जरुर इनकी समस्या को अपनी समस्या समझ निस्वार्थ सेवा में लगे रहते है , उनपर कोई छींटा-कसी नहीं ।कुछ ऐसे होते है जो कैमरा उठाये, माईक पकडे निकल पड़ते है देश को गरीब और उसकी गरीबी दिखाने । पर कवर करते -करते न जाने कैसे “गरीब की गरीबी” शीर्षक सिमट जाता है हिन्दू की गरीबी , मुसलमान की गरीबी , दलित की गरीबी में , इस जाती की गरीबी -उस जाती की गरीबी में । इस छेत्र की गरीबी उस छेत्र की गरीबी में और भी असंख्य कई हिस्सों में न-जाने कैसे आखिर ?
हालांकि पूरा का पूरा दोष उन पर मढना भी गलत होगा , क्यूंकि यह सब मलिन सी परत के तौर पर देश के हवा पानी में घुला हुआ है। देश में गरीब और उसकी गरीबी का समाधान करने से पहले हमें देश के हवा पानी में मौजूद इस मलिन परत को निकालने का समाधान ढूँढना होगा । आजादी के इतने वर्षो तक हम देश की गरीबी को बाहर का रास्ता दिखने में विफल ही हुए है। अब जरुरत है तो देश की हवा -पानी बदलने की जो की गरीब कहलाने वाले इस देश की छवि को सही मायनो में चमका सके ,और देश को गरीबी मुक्त “शीर्षक” दिलवा सके।
(आखिर की दो पंक्तियों को चुनाव 2014 के परिपेक्ष में या फिर किसी भी नेता के पक्ष में नहीं लिखा गया है , और न ही इन्हें उस परिपेक्ष मे देखने की कोशिश करें । उस से इस पोस्ट का असल अर्थ पूर्ण बदल जाएगा , क्यूंकि इन दोनों की तरफ देखने में आपको पता चलेगा की “चुनाव” में मुद्दे बदल जाया करते है और चुनाव बाद “नेता” ।इसलिए इस पोस्ट को इन दोनों की परछाई से बचकर पढ़ें ताकि मुद्दा न बदलने पाए , जो की अक्सर इन दोनों की जुगलबंदी से होता आ रहा है” ।)

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